कोई ख़ास बात नहीं हुई ।
इक रस्म था जो निभा गएँ,
तो ये ज़िन्दगी तो नहीं हुई !!!
कभी उनको हमसे था उन्स सा,
फिर हमें भी उनकी तलब लगी,
तो ये आशिक़ी तो नहीं हुई !!!
वो हज़ार शिकवा था दिल ही में,
जो ज़बां पे भी न आ सकें...
इक कशमकश में जो चुप रहें,
तो ये सादगी तो नहीं हुई !!!
था बोझ सर में तो झुक गया,
ये दिल भी थक के जो रुक गया,
था दर वो किसका नहीं पता,
यूँ कहीं पे जा के जो रुक गएँ,
तो ये बंदगी तो नहीं हुई !!!
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1 comment:
Poetry is when an emotion has found its thought and the thought has found words.
A poem begins as a lump in the throat, a sense of wrong, a homesickness, a lovesickness. One merit of poetry few persons will deny: it says more and in fewer words than prose.
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